गतांग से आगे …..
मैं लेटी लेटी सोच रही थी और मेरे साथ लेटी दीक्षा तो गहरी नींद में थी। फिर मैंने देखा कि शिवदास उठ कर बाथरूम गया है और खिड़की से अन्दर आ रही चाँद की रौशनी उसके सारे बिस्तर पर पड़ रही थी। मैं चुपके से उठी और जाकर उसके बिस्तर पर लेट गई। जब शिवदास आया तो मुझे वहां देखकर बोला,” अरे दीदी ! आप यहाँ? दीक्षा के पास नींद नहीं आई क्या?”
मैं बोली,”नहीं, पर मुझे चांदनी में सोना अच्छा लगता है।”
तो वो बोला,”ठीक है ! आप यहाँ सो जाओ, मैं वहां सो जाता हूँ।”
मैंने तभी पलट कर कहा,”अरे नहीं ! तुम भी यहीं आ जाओ मेरे पास !”
तो शिवदास भी उसी बेड पर मेरे साथ लेट गया पर कुछ फासला बना कर !
मैंने जो नाईटी पहन रखी थी उसका गला बहुत गहरा था और नाईटी के नीचे मैंने सिर्फ ब्रा और पेंटी पहन रखी थी। गहरे गले के कारण मेरे स्तनों का ज्यादातर हिस्सा दिख रहा था, यहाँ तक कि मेरी आधी ब्रा भी गले से बाहर झांक रही थी और मैं जानती थी कि चांदनी में नहाया हुआ मेरा बदन शिवदास को अपनी तरफ खींच रहा था।
थोड़ी देर हम दोनों फुसफुसा कर इधर उधर की बातें करते रहे ताकि कहीं दीक्षा की नींद न खुल जाये। फिर मैंने जान बूझ कर बहाना बनाया,”बड़ी गर्मी सी लग रही है ! क्या तुम्हें नहीं लग रही?”
“नहीं दीदी, मुझे तो मौसम ठीक लग रहा है।” शिवदास बोला।
पर मैं तो बहाना बना रही थी इसलिए मैं उठ कर बाथरूम में गई और एक मिनट बाद अपनी ब्रा उतार कर और अपनी सारी नाईटी आगे की तरफ खींच कर वापिस आकर बिस्तर पर लेट गई।
“अब ठीक है, असल में मेरी ब्रा बहुत कसी थी, शायद इसीलिए मुझे घुटन महसूस हो रही थी !” कह कर मैं फिर शिवदास की तरफ मुंह कर के लेट गई। अब ब्रा न होने की वजह से शिवदास मेरे बूब्स के कट्स ज्यादा अच्छी तरह देख सकता था क्योंकि सिर्फ मेरे चूचुक को छोड़ के तकरीबन मेरा दायाँ स्तन उसे सारा का सारा दिख रहा था।
मैंने फिर उसकी गर्लफ्रेंड की और आलतू फालतू की सेक्सी बातें करनी शुरू की ताकि उसमे थोड़ी गर्मी आये और उसका हाथ पकड़ कर अपने बूब्स के साथ लगा कर रख लिया। पहले तो वो थोड़ा डर रहा था पर मैं महसूस कर सकती थी कि उसकी मर्दानगी जागने लगी थी। मैंने अपना हाथ पीछे खींच लिया पर उसने अपना हाथ अब भी मेरे वक्ष से सटा रखा था वो हल्के हल्के हाथ हिलाने के बहाने मेरे बूब्स को दबा कर देख रहा था।
मैंने सोचा कि अब ज्यादा औपचारिकता की ज़रुरत नहीं, सीधा मुद्दे पे आ जाना चाहिए, तो मैंने सीधे-सीधे ही शिवदास से पूछ डाला- शिवदास क्या तुम्हें इन्हें दबाना अच्छा लग रहा है?
उसने नज़र उठा कर मेरी तरफ देखा और बोला,” हाँ दीदी, बहुत अच्छा लग रहा है !”
मैंने अपनी नाईटी का गला एक तरफ से हटा कर अपना दायाँ स्तन पूरा बाहर निकाल कर उसके सामने कर दिया और बोली,”लो, अब आराम से इसे दबा कर देखो।”
वो हिचकिचाया तो मैंने उसका हाथ पकड़ कर खुद ही अपने बूब पर रख दिया। उसने धीरे से दो एक बार मेरा बूब दबाया पर शायद यही उसके सब्र की आखरी हद थी, उसने बिना कुछ कहे अपना मुंह आगे किया और मेरा निप्पल मुंह में लेकर चूसने लगा। मैंने भी समझ लिया कि गाड़ी अब पटरी पर चल पड़ी है। मैंने अपना दूसरा स्तन भी नाईटी से बाहर निकाला और हाथ उसके पायजामे के ऊपर से उसके लण्ड पे फेरने लगी जो पहले से ही अकड़ा हुआ था।
“दीदी, सीधी होकर लेटो !” शिवदास बोला। दोस्तों आप ये कहानी मस्ताराम डॉट नेट पर पढ़ रहे है l
जब मैं सीधी होकर लेटी तो शिवदास ने उठ कर मेरी दोनों छातियाँ अपने हाथों में पकड़ी और बारी बारी से चूसने लगा और मैं उसकी पीठ सहलाने लगी। थोड़ी देर बूब्स चूसने के बाद शिवदास ने मेरे गालों और होंटों को चूमना शुरू किया, मैंने भी मज़े लेते हुए उसका भरपूर साथ दिया। हम दोनों बारी बारी से अपनी जीभें एक दूसरे के मुंह में डाल कर चूस रहे थे।
फिर मैंने उससे कहा,”शिवदास, पजामा उतारो !”
शिवदास ने अपने पायजामा और अंडरवियर उतारा और अपना लण्ड लाकर मेरे मुंह के पास कर दिया और मैंने भी उसका इशारा समझते हुए उसका पत्थर जैसा अकड़ा हुआ लण्ड मुंह में लेकर चूसना शुरू कर दिया। लण्ड चूसते-२ शिवदास ने अपनी शर्ट और मेरी नाईटी भी उतार कर फ़ेंक दी। कुछ देर लण्ड चुसवाने के बाद शिवदास टेढा होकर लेट गया और अपने हाथों के दोनों अंगूठों से मेरी पेंटी उतार दी। अब उसने मेरे पेट, कमर और जांघों को चूमना-चाटना शुरू किया और धीरे-२ मेरी टाँगें चौड़ी करके अपनी जीभ मेरी चूत में फिराने लगा। मैं भी चूत से टप-टप पानी छोड़ रही थी और उसका लण्ड चूस रही थी।
फिर मैंने कहा,”शिवदास, अब ऊपर आ जाओ !”
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